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गुरुपूर्णिमा पर सीख: कर्ण की अद्वितीय गाथा। Mahabharat Stories |

2024-07-21 6 Dailymotion

कर्ण: अद्वितीय प्रतिभा, दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति।

कर्ण, महाभारत के महान योद्धा, अपनी वीरता और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म कुंती और सूर्यदेव के पुत्र के रूप में हुआ, लेकिन उन्हें क्षत्रिय राजकुमार के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। जन्म के तुरंत बाद उन्हें गंगा में प्रवाहित कर दिया गया, जहां सारथी और उसकी पत्नी राधा ने उन्हें पाया। राधा के नाम पर उन्हें राधेय भी कहा जाता था।

कर्ण ने धनुर्विद्या में गहरी रुचि दिखाई और गुरु द्रोणाचार्य के पास गए, लेकिन द्रोण ने उन्हें शिष्य मानने से इनकार कर दिया क्योंकि कर्ण एक सारथी पुत्र थे। कर्ण ने हार नहीं मानी और भगवान परशुराम की ओर रुख किया, जो ब्राह्मणों को ही शिक्षा देने की प्रतिज्ञा किए हुए थे। कर्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और भगवान परशुराम के पास पहुंचे। कठिन परीक्षाओं के बाद, भगवान परशुराम ने उन्हें शिष्य स्वीकार किया और कर्ण अद्वितीय धनुर्धर बन गए।

एक दिन, भगवान परशुराम जब आराम कर रहे थे, कर्ण ने अपनी सहनशक्ति का अद्वितीय प्रदर्शन किया। भगवान परशुराम ने कर्ण की जांघ पर कीणे का काटा देखकर पहचान लिया कि कर्ण क्षत्रिय हैं और क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि जब उन्हें भगवान परशुराम की विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी, तब वे इसे भूल जाएंगे। यही श्राप महाभारत युद्ध में कर्ण की हार का कारण बना, जब वे अर्जुन के साथ युद्ध में अपना ज्ञान याद नहीं रख सके।

कर्ण की यह कहानी हमें सिखाती है कि झूठ और छल से कभी स्थायी सफलता नहीं मिलती। गुरु के प्रति सच्चाई और निष्ठा ही सबसे महत्वपूर्ण हैं। गुरुपूर्णिमा के इस पावन अवसर पर, कर्ण की कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम अपने गुरुओं का सम्मान करें, सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलें, और अपने जीवन में सच्चाई और निष्ठा के सिद्धांतों को अपनाएं। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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